कोई न आएगा थक जाओगे सदा कर के तुम अपने घर में मुक़फ़्फ़ल हो दर खुला कर के उस एक रात की क़ीमत अदा नहीं होगी तमाम-उम्र भी गुज़रे जो रतजगा कर के सिवाए तीरगी कुछ भी नज़र न आएगा तू मुझ से देख तो ख़ुद को कभी जुदा कर के तुम्हारी आँखों में बेहतर दिखाई देंगे हम तुम अपने आप को देखो तो आइना कर के वो किस तरह तुझे अपने क़रीब आने दे जो अपने आप से मिलता हो फ़ासला कर के जुनूँ में भी हमें तक़्दीस का ख़याल रहा हुज़ूर-ए-इश्क़ से लौटे तो इल्तिजा कर के