कोंपल कहीं फूटी है तो टूटी कहीं डाली है जश्न किसी बाग़ में रोए कहीं माली उट्ठा है किसी घर के अहाते से जनाज़ा शादी की किसी ने कहीं बारात निकाली होता है अमीरों के यहाँ रोज़ चराग़ाँ मुफ़्लिस की कोई ईद न होली न दिवाली तरसे कोई रोटी के निवाले के लिए भी दौलत किसी की इतनी कि जाए न सँभाली हिकमत कहें इस को कि हुकूमत की हिमाक़त गंदुम सड़े गोदाम में और पेट हैं ख़ाली ऐ कातिब-ए-क़िस्मत तिरी तक़्सीम अजब है ऐ मालिक-ए-दुनिया तिरी दुनिया है निराली