कुछ बताना नहीं कि तुझ से कहें दिल दुखाना नहीं कि तुझ से कहें ये नए ज़ाविए हैं ज़ख़्मों के दिल लुभाना नहीं कि तुझ से कहें इक ज़माना कि सब कहा तुझ से वो ज़माना नहीं कि तुझ से कहें दिल बहलता था आने जाने से आना-जाना नहीं कि तुझ से कहें कार-ए-मुश्किल है जोड़ना दिल का आज़माना नहीं कि तुझ से कहें हीर-राँझा की ये कहानी नहीं ये फ़साना नहीं कि तुझ से कहें ख़्वाहिशों को सुला चुके कब के अब जगाना नहीं कि तुझ से कहें कश्तियाँ सारी अब जलानी हैं कुछ बचाना नहीं कि तुझ से कहें घर हमारा उजड़ चुका है 'अदील' अब बसाना नहीं कि तुझ से कहें