कुछ ख़बर नामा-बर नहीं आती कोई सूरत नज़र नहीं आती थक गए हम तलाश करते हुए अपनी मंज़िल नज़र नहीं आती बिसरी यादों का है जो दिल में हुजूम रात ठहरी सहर नहीं आती जब ख़ुदी का ख़ुमार हो जाए ख़ुद-सरी राह पर नहीं आती अक्स-बर-आब है नज़र लेकिन सूरत-ए-चारागर नहीं आती दर्द-ओ-ग़म की फ़ुग़ाँ भी है ख़ामोश ये सदा अब इधर नहीं आती कोई 'सादिक़' को ढूँडने निकले उस की कोई ख़बर नहीं आती