कुछ मोहब्बत में अजब शेव-ए-दिल-दार रहा मुझ से इंकार रहा ग़ैर से इक़रार रहा कुछ सरोकार नहीं जान रहे या न रहे न रहा उन से तो फिर किस से सरोकार रहा शब-ए-ख़ल्वत वही हुज्जत वही तकरार रही वही क़िस्सा वही ग़ुस्सा वही इंकार रहा तालिब-ए-दीद को ज़ालिम ने ये लिक्खा ख़त में अब क़यामत पे मिरा वादा-ए-दीदार रहा हाल-ए-दिल बज़्म में उस शोख़ से हम कह न सके लब-ए-ख़ामोश की सूरत लब-ए-इज़हार रहा कुछ ख़बर है तुझे ओ चैन से सोने वाले रात भर कौन तिरी याद में बेदार रहा इक नज़र नज़अ में देखी थी किसी की सूरत मुद्दतों क़ब्र में बेचैन दिल-ए-ज़ार रहा दिल हमारा था हमारा था हमारा लेकिन उन के क़ाबू में रहा उन का तरफ़-दार रहा उम्र हँस-खेल के इस तरह गुज़ारी ऐ 'हिज्र' दोस्त का दोस्त रहा यार का मैं यार रहा