कुछ नज़र और झुका कर मिलना मुझ को पलकों में छुपा कर मिलना शहर-ए-दिल शहर-ए-ख़मोशाँ तो नहीं फिर भी तुम पाँव दबा कर मिलना पैर अश्कों से धुला दूँगा मैं तुम मिरे घर कभी आ कर मिलना नींद आँखों में भली लगती है मुझ को नींदों में बसा कर मिलना मुझ को आवाज़ न देना हरगिज़ मेरी तन्हाई पे छा कर मिलना वो जो चुप-चाप सा बैठा है वहाँ उस की आँखों में समा कर मिलना हाँ वही शख़्स है इक़बाल-'मतीन' आइना उस को दिखा कर मिलना