कूचा कूचा किस की ये तस्वीर थी शोहरतों में मौत की तफ़्सीर थी दिल का उजला-पन अंधेरा ले गया जिस्म की सारी फ़ज़ा गम्भीर थी दरमियानी फ़ासले तय हो गए चाहतों के पाँव में ज़ंजीर थी मौसमों के हाथ है किस का लहू रुत बदलने में अभी ताख़ीर थी था ग़ुबार-आलूद शाही तुमतराक़ ज़ंग-ख़ुर्दा हर नज़र शमशीर थी मस्लहत-आमेज़ थी 'ग़ालिब' की चुप हर तरफ़ गोया सदा-ए-'मीर' थी सर झुकाए थी बुलंदी भी 'सबा' साफ़-गोई में बड़ी तासीर थी