कुछ फ़ाएदे भी होते हैं उजड़े मकान के अल्फ़ाज़ इस में गूँजते हैं रफ़्तगान के ऐ चाँद इस में तेरी भी साज़िश ज़रूर है तारे किधर गए हैं मिरे आसमान के उड़ जाएगा यक़ीन के पिंजरे को तोड़ कर थोड़े से पर निकलने दो वहम-ओ-गुमान के ग़ज़लें मिरी बचा लो बुरे वक़्त के लिए अल्फ़ाज़ बेच डालना मुझ बे-ज़बान के कर्बल की रेत देख के इतने थे मुतमइन जैसे कि मुंतज़िर हों इसी इम्तिहान के इक बार मेरे लफ़्ज़ों को पढ़ कर ज़बान से किरदार ज़िंदा कर दो मिरी दास्तान के इतना असर तो रखती है माँ की दुआ 'अली' देखे हैं मैं ने खुलते किवाड़ आसमान के