कुछ इस अदा से नसीम-ए-बहार झूम के चल कि फूट निकले दिल-ए-ना-मुराद की कोंपल हसीं चमन में बदल जाए रेगज़ार-ए-हयात सराब-ए-यास से पैदा हों फ़रहतों के कँवल कई बरस से है बे-आब आबशार-ए-तलब कभी तो महव-ए-करम हो उमीद के बादल न रौशनी न तराने न रक़्स-ए-मौज-ए-शमीम हनूज़ चश्म-ए-सहर में है रात का काजल बहार में भी है फूलों को इंतिज़ार-ए-बहार ख़ुदा-ए-बाग़ ये तरतीब-ए-बाग़ कुछ तो बदल न छुप सकेगा ग़म-ए-ज़िंदगी का रुख़ 'अज़हर' न डाल उस पे फ़रेब-ए-ख़याल का आँचल