कुछ इस तरह भी हम ने गुज़ारी है प्यार में दिल में हुजूम-ए-यास निगह इंतिज़ार में अब बज़्म-ए-ऐश से भी उठा जा रहा है दिल अब लुत्फ़ आ रहा है ग़म-ए-रोज़गार में बेचैनियों की मेरी तुझे कुछ ख़बर भी है आँखें बिछी हुई हैं तिरे इंतिज़ार में दुनिया की ऊँच-नीच में कुछ कुछ सँभल गए अब हौसले नए हैं दिल-ए-बे-क़रार में हर ज़र्रा-ए-ज़मीं को बनाएँगे आफ़्ताब फ़ुर्सत मिले जो ज़िंदगी-ए-मुस्तआ'र में कल अम्न की तलाश में निकले थे क़ाफ़िले अब आ के रुक गए हैं तिरी रहगुज़ार में