कुछ मीठा कुछ खारा-पन है क्या क्या स्वाद लिए जीवन है कैसे आँख मिला कर बोले साफ़ नहीं जब इस का मन है शिकवे भी उन से ही होंगे जिन से थोड़ा अपना-पन है धन ही धन है इक तबक़े पर इक तबक़ा बेहद निर्धन है सूखा है तो बाढ़ कहीं पर बरसा ये कैसा सावन है कल निश्चित ही काम बनेंगे आज भले ही कुछ अड़चन है दिल का है वो साफ़ भले ही लहजे में कुछ कड़वा-पन है