कुछ मुझे कह के न कहवाइए आप बस ज़बाँ मेरी न खुलवाइए आप दोश पर और न भारी हो जाए मेरे सर की न क़सम खाइए आप बज़्म-ए-नाज़ उस की है ऐ हज़रत-ए-दिल पाँव अपने भी न फैलाइए आप ग़ैर के शिकवे न पूछो शब-ए-वस्ल पिछले मुर्दे न उखड़वाइए आप लोग जानेंगे तुम्हारा आशिक़ मैं अगर आऊँ तो शरमाइए आप कुछ पता मेरा बता दीजिएगा कुछ ख़बर मेरी अगर पाइए आप साथ मेरे न कोई चीख़ उठे मुझ को महफ़िल से न उठवाइए आप जाते जाते कहीं अग़्यार के घर काश रस्ते ही में मिल जाइए आप एक दम उस को भुला कर 'सालिक' जी किसी तरह तो बहलाइए आप