लुत्फ़ में वाँ ढंग है बेदाद का

लुत्फ़ में वाँ ढंग है बेदाद का
काम दे ऐ ख़ामुशी फ़रियाद का

क्यूँ कि ले तस्वीर उस की देखिए
हाथ क़ाबू में नहीं बहज़ाद का

उम्र-भर रखता है पाबंद-ए-कमीं
सैद ख़ुद इक दाम है सय्याद का

दा'वा-ए-बातिल की पुर्सिश रह गई
कौन पुरसाँ हसरत-ए-शद्दाद का

दूर तक अपनी निगाहें हैं रसा
पर्दा हाइल गर न हो ईजाद का

कौन याँ क़ैद-ए-तअ'ल्लुक़ में नहीं
पा-ब-गुल है सर्व से आज़ाद का

दिल में जब आए कि उस ने सुन लिया
ना-रसा क्यूँ नाम है फ़रियाद का

आप ही गर्दिश से है मजबूर-ए-चर्ख़
चाहना ऐसे से क्या इमदाद का

देखिए कसरत से वहदत को तो है
एक जल्वा मूजिद-ओ-ईजाद का

कोहकन ने उम्र-भर काटा पहाड़
मैं हूँ जूया चर्ख़ की बुनियाद का

बच गया तीर-ए-निगाह-ए-यार से
वाक़ई आईना है फ़ौलाद का

भूला है दीन-ओ-दुनिया आदमी
ख़ास्सा है ये बुतों की याद का

पहले नफ़्ग़-ए-सूर से आ जाऊँ याँ
शक न हो तुम को मिरी फ़रियाद का

ज़रबत-ए-तेशा थी पत्थर की लकीर
नाम मिटता ही नहीं फ़रहाद का

ख़ुद उड़ा जाता हूँ 'सालिक' ज़ोफ़ से
आह में तूफ़ाँ है क़ौम-ए-आद का


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