कुछ न कुछ की ख़्वाहिश में बे-नवा हुए हम लोग ला-इलाज मौसम में ला-दवा हुए हम लोग ग़म-गुसार लोगों ने दिल को यूँ जला डाला बे-अमान लम्हों में बे-रिदा हुए हम लोग मुख़्तलिफ़ हुए कितने इख़्तिलाफ़ करने पर क़ाफ़िले से बिछड़े तो जा-ब-जा हुए हम लोग 'नाज़' बे-यक़ीनी के बे-ग़िलाफ़ लम्हों में अपनी गूँज में छुप कर बे-सदा हुए हम लोग