नाव जब वहशी समुंदर की अमाँ पर छोड़ दी अपनी क़िस्मत की कहानी बादबाँ पर छोड़ दी मंज़िलों को देखते ही बे-मुरव्वत शख़्स ने रास्ते की गर्द पूरे कारवाँ पर छोड़ दी बे-मकाँ होते हुए इक मस्लहत-अंदेश ने अपने दिल की हर तमन्ना ला-मकाँ पर छोड़ दी बादलों को बिजलियों से मस्तियों में देख कर इक दुआ महसूर कर के आसमाँ पर छोड़ दी लुट गया जब कारवाँ तो 'नाज़' फिर सालार ने क़ाफ़िले की रहबरी भी सारबाँ पर छोड़ दी