मैं ख़ुद ही ख़्वाब-ए-इश्क़ की ताबीर हो गया गोया हर इक बशर तिरी तस्वीर हो गया अपने किए को आ के ज़रा देख तीर-गर तर ख़ून-ए-दिल से दामन-ए-नख़चीर हो गया फिर पेश आ गया वही दिलचस्प हादिसा दिल फिर किसी के दाम में तस्ख़ीर हो गया ये वज़्-ए-आशिक़ान ये अंदाज़-ए-एहतिराम आख़िर मिरा ख़याल उसे दिल-गीर हो गया आसूदगी नसीब सलीमुत्तबअ' हूँ मैं मुझ को ग़रीब-ख़ाना ही कश्मीर हो गया वाबस्ता मुझ से होना है ख़ुद वज्ह-ए-आफ़ियत दीवाना तेरा वाली-ए-तक़दीर हो गया तफ़रीद ख़ुद ज़रीया-ए-जाह-ओ-जलाल है मैं तेरा हो के साहब-ए-तौक़ीर हो गया तो ख़ूब जानता है कि मैं कौन था कभी और देख अब कि क्या फ़लक-ए-पीर हो गया होना था हश्र-ए-हसरत-ओ-हिर्मां अगर यही 'रहबर' ज़ह-ए-नसीब कि तू पीर हो गया