कुछ ज़बाँ नहीं खुलती कैफ़ियत वो तारी है ख़ामुशी के लहजे में बात-चीत जारी है तुम को क्या ख़बर क्या है 'आलम-ए-शब-ए-फ़ुर्क़त जाँ को वहशतें लाहक़ दिल को बे-क़रारी है बद-हवास आँखों से रास्ते को तकता हूँ कुछ समझ नहीं आता किस की इंतिज़ारी है घूमती है आँखों में एक साँवली सूरत दिल पे याद का ग़लबा लब पे आह-ओ-ज़ारी है लोग मेरी ग़ज़लों में तुम को ढूँड लेते हैं शे’र-ओ-शा’इरी कब है दास्ताँ तुम्हारी है जो थे दिल की दिल-जूई दूर हो चले 'काज़िम' अब तो मश्ग़ला अपना सिर्फ़ दिल-फ़िगारी है