मंज़िल-ए-शौक़ की राहों ने हमें मार लिया या'नी रंगीन गुनाहों ने हमें मार लिया बच के आए थे अभी ख़ंजर-ए-क़ातिल से कि दोस्त आप की शोख़ निगाहों ने हमें मार लिया यार देखो तो सही मंज़र-ए-ए'जाज़-ए-विसाल उन के बाज़ू की पनाहों ने हमें मार लिया ये तिरे 'ऐब तो क्या हम को हिरासाँ करते आप अपने ही गुनाहों ने हमें मार लिया भरी महफ़िल में जो उस शोख़ को देखा 'काज़िम' सब की मश्कूक निगाहों ने हमें मार लिया