कुंठाएँ दामन में छुपाए तृश्नाओं की प्यास लिए बादल शहर-शहर फिरते हैं अब शायद सन्यास लिए ऐ मरघट की शांत चिताओ तुम ने क्या महसूस किया उठती हैं दुनिया से लाशें आख़िर क्या विश्वास लिए राह दिखाओ मस्त हवाओं को सुनसान जज़ीरों की ये आवारा घूम रही हैं जाने कैसी यास लिए शीशे से मिल कर क्या होगा चूर-चूर हो जाऊँगा पत्थर हूँ दानिस्ता मैं ने जनम-जनम बन-बास लिए सोच रहा हूँ डूब न जाए बाढ़ के बहते पानी में कश्ती में बैठा वो मुसाफ़िर मल्लाहों की आस लिए गहराई में झाँक के देखो 'अश्क' बहुत कुछ पाओगे अपना अपना दुनिया में सब चीज़ें हैं इतिहास लिए