कुश्ता-ए-नाज़-ए-दिल-रुबा हैं हम ज़ख़्मी-ए-ख़ंजर-ए-अदा हैं हम क्या कहें तुम से हम कि क्या हैं हम मज़हर-ए-नूर-ए-किब्रिया हैं हम आप पर जब से मुब्तला हैं हम ख़्वेश-ओ-बेगाने से जुदा हैं हम आप हैं अपने हुस्न पर शैदा आप अपने ही पर फ़िदा हैं हम दोनों आलम से कुछ नहीं मतलब कूचा-ए-यार के गदा हैं हम गो ब-ज़ाहिर हैं सूरत-ए-आदम फ़िल-हक़ीक़त ख़ुदा-नुमा हैं हम बस 'क़मर' इतना इफ़्तिख़ार हमें यार के नक़्श-ए-कफ़्श-ए-पा हैं हम