कुटिया में कौन आएगा इस तीरगी के साथ अब ये किवाड़ बंद करो ख़ामुशी के साथ साया है कम खजूर के ऊँचे दरख़्त का उम्मीद बाँधिए न बड़े आदमी के साथ चलते हैं बच के शैख़ ओ बरहमन के साए से अपना यही अमल है बुरे आदमी के साथ शाइस्तगान-ए-शहर मुझे ख़्वाह कुछ कहें सड़कों का हुस्न है मिरी आवारगी के साथ शाइर हिकायतें न सुना वस्ल ओ इश्क़ की इतना बड़ा मज़ाक़ न कर शाइरी के साथ लिखता है ग़म की बात मसर्रत के मूड में मख़्सूस है ये तर्ज़ फ़क़त 'कैफ़' ही के साथ