कूज़ा जैसे कि छलक जाए है भर जाने पर कोई आँसू ही बहा दे मिरे मर जाने पर काम आया नहीं मेरा तह-ए-दरिया होना पिछले साहिल से भी नाकाम उभर जाने पर है ख़बर झूटी मगर फिर भी ख़बर भेजी जाए क्या ख़बर कोई यक़ीं कर ले ख़बर जाने पर कोह-ए-दिल कोई भी लम्हा कभी ख़ाली न रहा एक वीरानी रही ग़म के उतर जाने पर बुझ गया वक़्त से पहले जो दिया वो मैं हूँ ख़ुश नहीं होती हवा मेरे ठहर जाने पर तोड़ कर मुझ को किसी दिल को सुकूँ आता है और सिमटेगा कोई ख़ाक बिखर जाने पर या तो यूँ हो के कभी वक़्त पे काम आ जाए काम 'अमृत' का नहीं दर्द गुज़र जाने पर