लम्हे-भर में तुम ने मेरी हर ख़ूबी को ख़ाम किया मैं ने कहा कि नाम किया है तुम ने कहा बदनाम किया अपना काम था उस तक जाना गर्दिश हो या सोज़िश हो उस के दर तक पहुँचे दस्तक देते ही आराम किया जिस के सर पर ताज कभी था फ़िक्र में गुज़री उस की भी देखे दुनिया इस उल्फ़त ने क्या तेरा अंजाम किया लिखनी थी बेताबी दिल की 'अमृत' ख़त में यूँ लिक्खी कुछ काटा कुछ लिक्खा क़ासिद के हाथों पैग़ाम किया