क्या बताऊँ मुझे क्या लगता है हर-नफ़स तीर-ए-जफ़ा लगता है हूँ वो ख़ुद्दार किसी से क्या कहूँ साँस लेना भी बुरा लगता है फलते देखी है कहीं शाख़-ए-सितम मेरे कहने का बुरा लगता है हादसे भी हैं बड़े काम की चीज़ दोस्त दुश्मन का पता लगता है मेरा सर तो कहीं झुकता ही नहीं तेरा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा लगता है क्या कहूँ हालत-ए-दिल ऐ 'जर्रार' दर्द कुछ और सिवा लगता है