क्या ग़म है अगर बे-सर-ओ-सामान बहुत हैं इस शहर में किरदार के धनवान बहुत हैं चाहो तो तग़ाफ़ुल के नए तीर चलाओ टूटे हुए दिल में अभी अरमान बहुत हैं दुज़दीदा-निगाही ये हया-बार तबस्सुम इस बज़्म में लुट जाने के इम्कान बहुत हैं खो जाएँ न ये गौहर-ए-नायाब-ए-ग़म-ए-इश्क़ बाज़ार-ए-मोहब्बत से ये अंजान बहुत हैं जो ज़ख़्म भी तू ने दिए ताज़ा हैं अभी तक ऐ गर्दिश-ए-दौराँ तिरे एहसान बहुत हैं तय करके ज़माने में तरक़्क़ी के मनाज़िल क्या बात है हम लोग परेशान बहुत हैं हर दाग़ सियासत के सफ़ेदी में छुपाए ये राह-नुमा साहिब-ए-ईमान बहुत हैं बे-ख़ौफ़ सियासत के पस-ए-पर्दा हैं मुजरिम क्या बंदिशें क़ानून की बे-जान बहुत हैं हम हौसला-सामाँ हुए क्या शिद्दत-ए-ग़म में अर्बाब-ए-जहाँ देख के हैरान बहुत हैं अब अस्लहा-साज़ी पे है ताक़त का तवाज़ुन ये फ़ित्ना-ओ-शर के लिए सामान बहुत हैं बरसों से 'तरब' रिश्तों पे जो बर्फ़ जमी है अब उस के पिघल जाने के इम्कान बहुत हैं