क्या जाने वो अच्छा कि बुरा करते रहे हैं जो मेरे लिए रोज़ दुआ करते रहे हैं बख़्शी है जिहालत ने उन्हें राहनुमाई जो लोग यहाँ जुर्म-ओ-ख़ता करते रहे हैं होंटों पे मेरे रहती है तारीफ़ बस उन की वो हैं कि सदा शिकवा गिला करते रहे हैं इक रोज़ सिला इस का मिलेगा उन्हें यारो इज़्ज़त जो बुज़ुर्गों की सदा करते रहे हैं सूरज को ये अंदाज़ा 'सबा' हो नहीं सकता हम शम्अ' के मानिंद ज़िया करते रहे हैं