क्या जानिए क्या इश्क़ का मेआ'र कहे है सज्दे को भी तौहीन-ए-दर-ए-यार कहे है क्या बात ये ऐ अक़्ल के बीमार कहे है ग़म ऐसे हसीं फूल को तू ख़ार कहे जिस बात को कहते हुए डरता है ज़माना वो मेरे सिवा कौन सर-ए-दार कहे है ऐ जोश-ए-जुनूँ तू ही क़दम अपने बढ़ा दे ये अक़्ल तो हर राह को दुश्वार कहे है वो ज़ीस्त जिसे दिल की जराहत का है एहसास हर साँस को चलती हुई तलवार कहे है बेकार सही आँख से टपका हुआ आँसू अनमोल इसे मेरा ख़रीदार कहे है कौन ऐसा है वाइज़ जो गुनाहों से बचा हो क्यों बादा-परस्तों को गुनहगार कहे है इस बज़्म में जो भी नज़र आता है वो बे-ख़ुद ये होश कहाँ क्या निगह-ए-यार कहे है फ़ुर्सत हो तो ग़म-ख़ाने में आकर कभी सुन लो 'शाइर' का फ़साना दर-ओ-दीवार कहे है