क्या कहूँ मैं ने कैसी खाई चोट पेट उखड़ा कमर में आई चोट जिस पे बीती न वो हो वो क्या जाने उन को इक खेल है पराई चोट और खाओ ज़रा क़ला-बाज़ी तुम ने अपने गुनों से खाई चोट मेरे दुख का शरीक कौन हुआ अपनी अपनी सभों ने गाई चोट गोद लेना मुझे न रास आया ये नई तरह की उठाई चोट मेरे चेहरे से हो गई ज़ाहिर लाख मैं ने बहन छुपाई चोट अब बुढ़ौती में दर्द होता है हड्डियों ने बहुत चुराई चोट कोई सौदा न था मिरे क़ाबिल जा के बाज़ार में मैं लाई चोट आँसू भर आए उन की आँखों में मैं ने 'शैदा' को जब दिखाई चोट