क्या करिश्मा था ख़ुदाया देर तक ख़ुद को खो कर ख़ुद को पाया देर तक छू के लौटा जब तुझे मेरा ख़याल होश में वापस न आया देर तक कल कोई झोंका हवा का छू गया और फिर तू याद आया देर तक हम तिरी आग़ोश में थे रात भर ''माह-ए-कामिल मुस्कुराया देर तक'' कल तिरे एहसास की बारिश तले मेरा सूना-पन नहाया देर तक सुन के भीगी रात की सरगोशियाँ इक कुँवारा-पन लजाया देर तक