क्या ख़बर थी इश्क़ में ये भी सितम हो जाएगा आँख में आँसू न होंगे दर्द कम हो जाएगा अपने ऐबों दूसरों की ख़ूबियों पर रख नज़र तू भी दुनिया की नज़र में मोहतरम हो जाएगा मेरे आँसू जैसे उन की आँख से बहने लगे क्या कभी ये मो'जिज़ा ऐ चश्म-ए-नम हो जाएगा किस को था मालूम हँसता खेलता बचपन मिरा मुफ़्लिसी की ज़द में आ के वक़्फ़-ए-ग़म हो जाएगा पस्ता-क़द लोगों में 'फ़रहत' सर-बुलंदी जुर्म है देखना तेरा भी इक दिन सर क़लम हो जाएगा