क्या ख़बर थी कि कभी बे-सर-ओ-सामाँ होंगे फ़स्ल-ए-गुल आते ही इस तरह से वीराँ होंगे दर-ब-दर फिरते रहे ख़ाक उड़ाते गुज़री वहशत-ए-दिल तिरे क्या और भी एहसाँ होंगे राख होने लगीं जल जल के तमन्नाएँ मगर हसरतें कहती हैं कुछ और भी अरमाँ होंगे ये तो आग़ाज़-ए-मसाइब है न घबरा ऐ दिल हम अभी और अभी और परेशाँ होंगे मेरी दुनिया में तिरे हुस्न की रानाई है तेरे सीने में मिरे इश्क़ के तूफ़ाँ होंगे काफ़िरी इश्क़ का शेवा है मगर तेरे लिए इस नए दौर में हम फिर से मुसलमाँ होंगे लाख दुश्वार हो मिलना मगर ऐ जान-ए-जहाँ तुझ से मिलने के इसी दौर में इम्काँ होंगे तू इन्ही शेरों पे झूमेगी ब-अंदाज़-ए-दिगर हम तिरी बज़्म में इक रोज़ ग़ज़ल-ख़्वाँ होंगे