क्या किसी मय-कश ने माँगी है दुआ बरसात की मय-कदा-बर्दोश आती है घटा बरसात की क्यों हवा बाँधे न अब हर पारसा बरसात की बे-पिए मदहोश करती है फ़ज़ा बरसात की एक मुद्दत से हमें भूला हुआ था मय-कदा कुछ तक़ाज़ा कर रही है फिर हवा बरसात की यूँ उड़ाया जा रहा था मेरे रोने का मज़ाक़ आज उस ने बात छेड़ी बारहा बरसात की शग़्ल-ए-मय-नोशी है जाएज़ इस लिए बरसात में कुछ तो पीना चाहिए खा कर हवा बरसात की दहर में ये दो ही चीज़ें हैं दलील-ए-बर्शगाल या हमारी चश्म-ए-गिर्यां या घटा बरसात की मिलती-जुलती है हमारी चश्म-ए-गिर्यां से बहुत इक ज़रा पाबंद-ए-मौसम है घटा बरसात की सावन आते ही जो हम रोए किसी की याद में हो गई 'साहिर' यहीं से इब्तिदा बरसात की