क्या क्या वो हमें सुना गया है रह रह के ख़याल आ रहा है इक बात न कह के आज कोई बातों में हमें हरा गया है तुम ख़ुश नहीं होगे हम से मिल के आ जाएँगे हम हमारा क्या है हम लाख जवाज़ ढूँडते हों जो काम बुरा है वो बुरा है क्या फ़ाएदा फ़ाएदे का यारो नुक़सान में क्या मुज़ाइक़ा है तुम ठीक ही कह रहे थे उस दिन कुछ हम ने भी इन दिनों सुना है जितनी है तिरी निगाह क़ातिल उतनी तिरे हाथ में शिफ़ा है दो-शाख़ा है मेरे ज़ेहन में क्यों जब सामने एक रास्ता है कहने को हरा-भरा है लेकिन अंदर से दरख़्त खोखला है ख़ुश करने को जो कही थी तू ने 'बासिर' उसी बात पर ख़फ़ा है