क्या सुनाएँ हाल-ए-दिल इज़हार के क़ाबिल नहीं लुत्फ़ ही क्या ज़िंदगी में तुम अगर शामिल नहीं इक ज़रा सी ठेस पहूँची टुकड़े टुकड़े हो गई कोई शीशा है मिरे सीने में शायद दिल नहीं मुस्कुरा देता हूँ अक्सर गर्दिश-ए-हालात पर सोचता हूँ ज़ेर-ए-पा अब कौन सी मंज़िल नहीं ग़म दिए दुनिया ने लेकिन मुझ को पहचाने बग़ैर कोई ग़म शायान-ए-मौज-ए-इज़्तिराब-ए-दिल नहीं जाने ले आई हमें किस मोड़ पर दीवानगी ढूँडने निकले थे जिस को हम ये वो मंज़िल नहीं किस तरह आए तिरी सूरत नज़र के सामने दिल का आईना ही जब तस्वीर के क़ाबिल नहीं इक मुसलसल दर्द-ए-मंज़िल एक जेहद-ए-मुस्तक़िल कोई लम्हा ज़िंदगी में लम्हा-ए-हासिल नहीं छोड़ कर 'अज़्मत' को तन्हा हम-सफ़र कहने लगे ऐसा दीवाना हमारे साथ के क़ाबिल नहीं