मौजों में तलातुम है साहिल पे भी तूफ़ाँ है अब अपने सफ़ीने का अल्लाह निगहबाँ है हर चंद मुहीत-ए-दिल तारीकी-ए-हिज्राँ है शो'ला तिरी यादों का सीने में फ़रोज़ाँ है देखा ही नहीं तुम ने क्या रंग-ए-बहाराँ है सुर्ख़ी है जो फूलों पर वो ख़ून-ए-शहीदाँ है तख़रीब के पर्दे में ता'मीर भी पिन्हाँ है तारीक फ़ज़ाओं में इक शम्अ' फ़रोज़ाँ है क्या ग़म जो अंधेरा है दुनिया की फ़ज़ाओं में जो दाग़-ए-तमन्ना है ख़ुर्शीद-ए-दरख़्शाँ है खुलते नहीं लब मेरे एहसास-ए-हमीय्यत से मरता हूँ कि हाल-ए-दिल चेहरे से नुमायाँ है ख़्वाबों के दरीचों से झाँका है बहारों ने अब दामन-ए-सहरा भी दामान-ए-गुलिस्ताँ है मुमकिन है सबा ख़ुशबू सहरा में उड़ा लाए हर-चंद घटाओं का रुख़ सू-ए-गुलिस्ताँ है क्या ख़ौफ़ तुझे आख़िर ऐ राह-रव-ए-हस्ती कहते हैं अजल जिस को हस्ती की निगहबाँ है छाएगी ख़ुशी इक दिन ग़म-ख़ाना-ए-हस्ती पर ग़म तो मिरी दुनिया में कुछ देर का मेहमाँ है अब आप की मर्ज़ी है जो चाहें हमें समझें दिल आप का शैदा है दिल आप पे नाज़ाँ है तस्वीर तिरी अब तक फिरती है निगाहों में हर याद तिरी अब तक नज़दीक-ए-रग-ए-जाँ है उठ कर तिरे कूचे से अब जाए कहाँ 'अज़्मत' दुनिया भी बयाबाँ है उक़्बा भी बयाबाँ है