क्या तुम से कहूँ मुझ से वो क्या पूछ रहा था मुझ से ही मेरे घर का पता पूछ रहा था नफ़रत के असीरों से मिरी सादगी देखो मैं दर्द-ए-मोहब्बत की दवा पूछ रहा था बेबाक निगाहों की तरफ़ देख के मेरा दिल मुझ से तड़पने का मज़ा पूछ रहा था क्यूँकर न किया याद मुझे वक़्त-ए-मुसीबत लोगों से मोहब्बत का ख़ुदा पूछ रहा था इक़रार-ए-मोहब्बत का ये अंदाज़ अजब है वो करके ख़ता मेरी ख़ता पूछ रहा था शायद वो इसी बात पे रोने लगे 'दिलकश' मैं जुर्म-ए-मोहब्बत की सज़ा पूछ रहा था