शाइ'र हो इतराते क्यों हो शेर सुनाओ गाते क्यों हो आईने को सामने रख कर तुम आख़िर शरमाते क्यों हो जो कहना है सच सच कह दो सूली से घबराते क्यों हो मैं हूँ सीधा-सादा मुझ को बातों में उलझाते क्यों हो सच का दा'वा करने वालो झूटी क़स्में खाते क्यों हो पैमानों में आग छुपी है मयख़ाने में जाते क्यों हो तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ छोड़ो 'दिलकश' मिलने से कतराते क्यों हो