क्यों न क़ुर्बां मैं हूँ इस तकरार पर प्यार आता है तिरे इंकार पर नाज़ बे-जा है अभी गुफ़्तार पर फ़ैसला बाक़ी है जब किरदार पर बाम पर शायद वो आएँ बे-नक़ाब चश्म-ए-हसरत है दर-ओ-दीवार पर हर कली होती है सदक़े सुब्ह-ओ-शाम तेरे गेसू और तिरे रुख़्सार पर ख़ून से मैं ने भी सींचा है चमन हक़ है मेरा भी गुल-ओ-गुलज़ार पर इश्क़ में दैर-ओ-हरम को भूल जा सर झुका दे आस्तान-ए-यार पर हम वफ़ादारी की ख़ातिर मर-मिटे यार का लुत्फ़-ओ-करम अग़्यार पर हुस्न के हाथों में आई शाख़-ए-गुल इश्क़ की नज़रें रहीं तलवार पर चेहरा-ए-नाहीद-ओ-परवीं मुन्फ़इल है नज़र एक मतला-ए-अनवार पर ज़ख़्म 'असलम' फिर हरे होने लगे है मसीहा का करम बीमार पर