क्यों न जहाँ में हो अयाँ ऐब-ओ-हुनर अलग-अलग देखते हैं ब-चश्म-ए-ग़ौर अहल-ए-नज़र अलग-अलग राह में उन को वह्म था कोई न बद-गुमान हो आए तो साथ-साथ वो मुझ से मगर अलग-अलग किस का यक़ीन कीजिए किस का यक़ीं न कीजिए लाए हैं उस की बज़्म से यार ख़बर अलग-अलग मैं हूँ इधर तो वो उधर मैं हूँ यहाँ तो वो वहाँ रहते हैं मुझ से दूर दूर आठ-पहर अलग-अलग रंज-ए-फ़िराक़-ए-यार भी सदमा-ए-रोज़गार भी एक दिल और इतने ग़म चाहिए घर अलग-अलग उन को ये वह्म है कहीं एक से एक मिल न जाएँ लोग बहुत हैं बज़्म में सब हैं मगर अलग-अलग हश्र को उस ने चुन लिए 'दाग़' गुनाहगार-ए-इश्क़ ताड़ गई हज़ार में उस की नज़र अलग-अलग