लब न अपने कभी आलूदा-ए-फ़रियाद रहे हम हुजूम-ए-ग़म-ओ-आलाम में भी शाद रहे कार-ए-ता'मीर-ए-नशेमन न रुके जुरअत-ए-शौक़ बाग़बाँ लाख तके घात में सय्याद रहे ज़ुल्फ़-ए-हस्ती को बहर-रंग सँवारा हम ने ये अलग बात कि हम ख़स्ता-ओ-बर्बाद रहे दिल को तड़पाती है बीते हुए लम्हात की याद काश ऐसा हो के अब कुछ न मुझे याद रहे वुसअ'तों में तिरी भूला हूँ मैं तन्हाई को दश्त-ए-वहशत मिरे दुनिया तिरी आबाद रहे किस क़दर ख़ून हुआ नज़्र-ए-बहार-ए-गुलशन हम-सफ़ीरो ये चमन काश अब आबाद रहे रंज-ओ-ग़म की न कड़ी धूप कभी उन पे पड़ी छाँव में जो तिरी ज़ुल्फ़ों की रहे शाद रहे अपने इस फ़िदवी-ए-गुलशन को भी जब आए बहार याद कर लेना चमन वालो अगर याद रहे सब हवादिस रह-ए-मंज़िल के गुज़र लें मुझ पर कारवाँ के लिए बाक़ी न कुछ उफ़्ताद रहे क़िस्सा-ए-दर्द मैं किस दिल से सुनाऊँ 'क़ासिद' सुन के अहवाल मिरा क्यों कोई नाशाद रहे