लब पे कुछ है और ही कुछ दिल में है क्या इरादा देखिए क़ातिल में है मिस्ल-ए-मूसा देख कर ग़श खाओगे वो तजल्ली मेरे कोह-ए-दिल में है मेरी चश्म-ए-तर पे मत जाओ अभी आग ऐसी अश्क की झिलमिल में है पूछिए मत उस के बारे में सवाल जो मिरा हासिल न कुछ शामिल में है कर सके महसूस जो दर्द-ए-'शफ़ीक़' कौन ऐसा हम-नवा महफ़िल में है