लफ़्ज़ों में उन का नक़्श-ए-कफ़-ए-पा दिखाई दे ना'त-ए-नबी कहूँ तो मदीना दिखाई दे हर दम हो जिस को रहमत-ए-आलम तिरा ख़याल तूफ़ान में भी उस को जज़ीरा दिखाई दे ना'त-ए-नबी के साथ मैं पढ़ती रहूँ दरूद मुझ को यही नजात का रस्ता दिखाई दे दे मेरी आँख को भी बसारत मिरे ख़ुदा जो शख़्स उन का हो वही उन का दिखाई दे सारी नहीं ये हुस्न-ए-मोहम्मद की रौशनी सूरज तो उन का नक़्श-ए-कफ़-ए-पा दिखाई दे दरिया पे चल के जाऊँगी अर्ज़-ए-हिजाज़ तक मुझ को तो पानियों पे भी रस्ता दिखाई दे फिर वक़्त हो गया है अज़ान-ए-बिलाल का सहरा-ए-ज़िंदगी मुझे सोना दिखाए दे सोचूँ तमाम दिन दर-ए-अक़्दस को मैं 'क़मर' आते ही नींद गुम्बद-ए-ख़ज़रा दिखाई दे