सजन मुझ पर बहुत ना-मेहरबाँ है कहाँ वो आशिक़ाँ का क़दर-दाँ है कहूँ अहवाल दिल का उस को क्यूँकर बहुत नाज़ुक-मिज़ाज ओ बद-ज़बाँ है मिरा दिल बंद है उस नाज़नीं पर अजब उस ख़ुश-लिक़ा में एक आँ है भवाँ शमशीर हैं ओ ज़ुल्फ़ फाँसी हर इक पलक उस की मानिंद-ए-सिनाँ है ख़ुदा उस को रक्खे दुनिया में महफ़ूज़ निहाल-ए-आरज़ू आराम-ए-जाँ है चंद्र बे-वक़र है उस बद्र आगे सफ़ा उस मुख की हर इक पर अयाँ है समझता है तिरे अशआर 'फ़ाएज़' ख़ुदा के फ़ज़्ल सूँ वो नुक्ता-दाँ है