लहू की बात करें और चमन की बात करें कुछ अपनी बात करें कुछ वतन की बात करें कहीं न तेग़ज़नी हो कहीं न ख़ून बहे जो मिल के हम कभी गंग-ओ-जमन की बात करें वो गुफ़्तुगू हो गुलों की कि हो चमन का ख़याल तो सब से पहले हम उस के बदन की बात करें झुलस रहा है जो नफ़रत की आग में गुलशन तो क्यों न बुलबुलें रंज-ओ-मेहन की बात करें जहाँ के ऐश-ओ-तरब को दवाम है हासिल 'सना' से कहिए उसी अंजुमन की बात करें