मक़्तल-ए-दुख़्तर-ए-कम-नस्ल से उठता था धुआँ मदफ़न-ए-ज़ौजा-ए-वाली में बड़ी बर्फ़ पड़ी मैं ने डाला जो कोई वास्ता अँगारों को यार कल रात अँगेठी में बड़ी बर्फ़ पड़ी बंद कमरे में मिरी आँख ने सपने सेंके सहन दालान में खिड़की में बड़ी बर्फ़ पड़ी ओस पड़ती रही मुझ पर मिरे अरमानों पर और अग़्यार की बस्ती में बड़ी बर्फ़ पड़ी