लम्हात ग़म-ए-इश्क़ के बेबाक बहुत थे क़िस्से मेरी चाहत के ख़तरनाक बहुत थे मैं ख़ून के धागों से उन्हें सी नहीं पाया ज़ख़्मों के गरेबान मिरे चाक बहुत थे आई है बला एक फ़लक से गुमान था जब ग़ौर किया मैं ने तो अफ़्लाक बहुत थे आ जाता है ख़ुद मौत को रह रह के पसीना तेवर मेरी हस्ती के ग़ज़बनाक बहुत थे दुनिया तो रही चाँद सितारों की हवस में अम्बार ख़ज़ानों के तह-ए-ख़ाक बहुत थे अफ़्कार के फूलों को भी जब ग़ौर से देखा कमयाब थे गुल और ख़स-ओ-ख़ाशाक बहुत थे रास आने लगा पैरहन-ए-ख़ाक भी हम को क़ुदरत के करिश्मे पस-ए-पोशाक बहुत थे सीने में अंधेरे के था पोशीदा सवेरा ज़हरों को छुपाए हुए तिरयाक बहुत थे कुछ लोगों की रूहों पे तो क़ाबिज़ रहा शैताँ थे उजले लिबास उन के वो नापाक बहुत थे मैं था जो उभरता गया 'तौक़ीर' भँवर से हस्ती में मेरी दलदल-ओ-लोशाक बहुत थे