नहीफ़-ओ-ज़ार-ए-सदा थक के बैठ जाती है सर-ए-ज़बाँ ही दुआ थक के बैठ जाती है बहुत कठिन है अज़ीज़ो हमारी हम-सफ़री हमारे साथ हवा थक के बैठ जाती है न इतना रख़्त-ए-सफ़र दें समुंदरों से कहो मियान-ए-राह घटा थक के बैठ जाती है हर एक बार उभरता है आफ़्ताब-ए-वफ़ा हर एक बार जफ़ा थक के बैठ जाती है यहीं कहीं पे घने ज़िंदगी के साए हैं यहीं कहीं पे क़ज़ा थक के बैठ जाती है वहाँ से होता है जारी ख़मोशियों का सफ़र जहाँ पहुँच के सदा थक के बैठ जाती है गुलों से कह दो अभी वक़्त है अभी हंस लें सहर के बा'द सबा थक के बैठ जाती है बहुत ही तेज़ है 'काज़िम' हयात की रफ़्तार ये और बात ज़रा थक के बैठ जाती है