ले लिया अल्लाह से मैं ने कभी भगवान से काम कितने ही निकाले जान और पहचान से देखना उन खाने वालों को न आएगा मज़ा कल की जाने वाली मुर्ग़ी आज जाए जान से हर कस-ओ-ना-कस की सुन कर अन-सुनी करता हूँ मैं बात बेगम की सुना करता हूँ पूरे ध्यान से हम किसी नेता के दुम-छल्ले नहीं बन कर रहे ज़िंदगी हम ने गुज़ारी है बहुत ही शान से मार कर चतुराई से चर्बा किया और पढ़ दिया शे'र कितने ही उड़ा कर 'मीर' के दीवान से बस चले माता-पिता ही ज़हर दे कर मार दें सब परेशाँ-हाल हैं बढ़ती हुई संतान से चाय पीते हैं तो फ़ौरन बढ़ के ले लेते हैं पान दब के हम रहते नहीं कम-ज़र्फ़ के एहसान से