लोग अपनी तस्वीरें वक़्त से छुपाते हैं अक्स तो हक़ीक़त के आइने दिखाते हैं ख़ुशबुओं में फूलों की अहल-ए-दिल नहाते हैं बन-सँवर के महफ़िल में आप जब भी आते हैं ज़िंदगी की राहों में फूल मुस्कुराते हैं लोग सिंफ़-ए-नाज़ुक से क़ुर्बतें बढ़ाते हैं कैसे भूल जाऊँ मैं धुँदली धुँदली यादों को ये ख़याल तो मेरी हिम्मतें बढ़ाते हैं क्या हसीन रिश्ता था चाँदनी का आँगन से आज भी निगाहों में ख़्वाब जगमगाते हैं शाम से निकलते हैं रात का सफ़र ले कर इंतिज़ार के सूरज सुब्ह डूब जाते हैं कब मिज़ाज बदलेगा ज़िंदगी के मौसम का फूल से बदन वाले हम से ख़ार खाते हैं रात भीग जाती है जुगनूओं की बारिश से झुटपुटे में वो अक्सर गीत गुनगुनाते हैं शक्ल कब बदल जाए डर है इस लिए 'सरवत' घर पे लोग नामों की तख़्तियाँ लगाते हैं