उस को मिलेगी दर्द की दौलत जहान से गुज़रे न कोई मेरी तरह इम्तिहान से मेरे ख़ुदा मुझे तू ज़मीं पर उतार दे घबरा गया है दिल मिरा ऊँची उड़ान से ऐसा न हो कि कर्ब से दीवारें रो पड़ें ज़्यादा न बात कीजिए सूने मकान से मैं दूसरों के अक्स में ढलता चला गया तस्वीर बोलती रही मेरी ज़बान से मिलती हैं कितनी रोटियाँ मेहनत की धूप में पूछे कोई ये खेत में जा कर किसान से अब तक हवेलियों में मिरा ज़िक्र-ए-ख़ैर है रिश्ता जुड़ा हुआ है अभी ख़ानदान से गुज़रेगी रात कैसे कि दिन तो गुज़र गया पढ़ता हूँ रोज़ शाम का अख़बार ध्यान से परदेस में भी देस की ख़ुशबू नहीं गई नाता है मेरी रूह का हिन्दोस्तान से मंज़िल की जुस्तुजू में भटक जाओ न कहीं 'सरवत' चराग़ ले के निकलना मकान से